“मोर संग चलव रे” गीत के गीतकार लक्ष्मण मस्तूरिया को छत्तीसगढ़ याद कर रहा है
आज उनकी पुण्य तिथि है ,मुख्यमंत्री साय ने दी,श्रद्धांजलि
एक दौर था रेडियो का जब उस समय छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश एक थे ।तब भी गली गली में बज रहे रेडियो से उनके मधुर गीत मोर संग चलव रे सुनकर जाते हुए , बच्चे बूढ़े भी सुनने के लिए रुक जाया करते थे । आज उसी अमर गीत के गीतकार लक्ष्मण मस्तूरिया की पुण्य तिथि है ।समूचा छत्तीसगढ़ उनको याद कर रहा है।
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध जनकवि और गीतकार स्वर्गीय श्री लक्ष्मण मस्तुरिया की 03 नवंबर को पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की है। मुख्यमंत्री ने उन्हें याद करते हुए कहा है कि मस्तूरिया के गीतों में छत्तीसगढ़ की माटी की सौंधी महक और यहां के लोक-जीवन की झलक दिखती है। छत्तीसगढ़ का सहज-सरल लोक जीवन उनके गीतों में रचा-बसा है।उन्होंने अपने सु-मधुर और दिलकश आवाज की बदौलत छत्तीसगढ़ के हर वर्ग के दिलों में जगह बनाई। उन्होंने कई छत्तीसगढ़ी फिल्मों के लिए लोकप्रिय गीतों की रचना की। उनका गीत ‘मोर संग चलव रे-मोर संग चलव जी’ काफी लोकप्रिय हुआ। साय ने कहा कि छत्तीसगढ़ के कला जगत में मस्तुरिया जी का योगदान हमेशा याद किया जाएगा।
बिलासपुर के मस्तूरी में 7 जून 1949 को जन्मे लक्ष्मण मस्तुरिया ने कई छत्तीसगढ़ी गीतों की रचना की जिन्हें उन्होंने अपनी मधुर आवाज में गाया। आकाशवाणी से बजने वाले इन गीतों ने लोगों के दिलों में जगह बनाई। प्रदेश के अनगिनत कवि सम्मेलनों में लोगों ने अपने इस प्रिय कवि को बरसों प्यार से सुना। उन्हें इसी वजह से छत्तीसगढ़ का जनकवि कहा जाता था। वे मूलतः गीतकार थे। मोर संग चलव रे, मैं छत्तीसगढ़िया अंव रे , हमू बेटा भुंइया के, गंवई-गंगा, धुनही बंसुरिया, माटी कहे कुम्हार से, सिर्फ सत्य के लिए उनकी प्रमुख कृतियां थीं। लक्ष्मण मस्तूरिया रामचंद्र देशमुख बहुमत सम्मान (दुर्ग) और सृजन सम्मान से नवाजे गए थे ।