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हाईकोर्ट में प्रकरण विचाराधीन होने के बाद भी प्राचार्य पदोन्नति की सूची जारी करने से नाराज न्यायालय ने पदोन्नति आदेश पर लगाई रोक शासन को दिया अवमानना का नोटिस

हाईकोर्ट ने प्राचार्य प्रमोशन में लगाया स्टे, अवमानना नोटिस भी किया जारी, कोर्ट में दिये अंडरटेकिंग का अल्लंघन

रायपुर/बिलासपुर प्रवक्ता.कॉम 1 मई 2025

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कल शाम स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा प्राचार्य पदोन्नति की सूची पर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने तत्काल रोक लगाते हुए मामले पर तीखी टिप्पणी की है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक

छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा विभाग को उस वक्त बड़ा झटका लगा जब राज्य के उच्च न्यायालय ने प्राचार्य पदोन्नति आदेश पर रोक (Stay) लगा दी और विभाग को अवमानना का नोटिस (Contempt Notice) भी जारी किया। यह कार्रवाई विभाग द्वारा हाईकोर्ट को दी गई पूर्व अंडरटेकिंग के उल्लंघन के कारण हुई है।

दरअसल, प्राचार्य प्रमोशन से जुड़े कई मामले हाईकोर्ट में लम्बित हैं, जिनमें से एक केस वर्ष 2019 से लंबित है और अन्य प्रकरण 2025 और बीएड-डीएलएड अर्हताओं से संबंधित हैं। 28 मार्च 2025 को इन सभी मामलों की पिछली सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से ने अदालत में यह अंडरटेकिंग दी थी कि जब तक अगली सुनवाई नहीं होती, तब तक कोई भी प्रमोशन आदेश जारी नहीं किया जाएगा।

हाईकोर्ट ने इन सभी याचिकाओं को एक साथ सुनने की अनुमति दी थी और अगली सुनवाई की तारीख 1 मई 2025 निर्धारित की थी। लेकिन हैरानी की बात यह रही कि शिक्षा विभाग ने तय तारीख से ठीक एक दिन पहले, 30 अप्रैल 2025 को, प्राचार्य प्रमोशन की सूची जारी कर दी, जो कि न्यायालय में दी गई अंडरटेकिंग का स्पष्ट उल्लंघन था।

आज जब सुनवाई शुरू हुई, तो याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ताओं ने अदालत का ध्यान इस गंभीर उल्लंघन की ओर आकर्षित किया। अधिवक्ताओं ने दलील दी कि कोर्ट को दिए गए अपने ही आश्वासन के विपरीत जाकर आदेश जारी करना, सीधा न्यायालय की अवमानना है।

कोर्ट ने तर्कों को स्वीकार करते हुए प्राचार्य प्रमोशन आदेश पर तत्काल रोक (Stay) लगा दी और शिक्षा विभाग को अवमानना नोटिस जारी कर दिया है। अदालत अब मामले की अगली सुनवाई में शिक्षा विभाग से जवाब तलब करेगी।

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ शासन स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा जारी की गई लिस्ट में ई संवर्ग के 1524 और टी संवर्ग के 1401, कुल 2925 शिक्षकों को प्राचार्य के पद पर प्रमोट किया गया था। इस सूची में व्याख्याता (नियमित एवं एलबी) और प्रधान पाठक (माध्यमिक विद्यालय) शामिल थे। इस निर्णय से राज्य के हजारों शिक्षकों में असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई है, वहीं शिक्षा विभाग पर न्यायिक आदेशों के प्रति उदासीनता का आरोप लग रहा है। अब देखना होगा कि विभाग हाईकोर्ट के नोटिस का क्या जवाब देता है और प्रमोशन की प्रक्रिया पर इसका क्या असर पड़ता है।

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