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बैगा जनजाति की अद्भुत नृत्य शैली है “रीना “जिसे संरक्षित किए जाने की जरूरत है

दशहरे से लेकर दीपावली तक चलता है उनका नृत्य उत्सव , रात में भी जंगलों से नाचने गाने की आती हैं आवाजें

आपको मध्यप्रदेश और सीमावर्ती छत्तीसगढ़ में दीपावली के समय प्रचलित लोक नृत्य “रीना “के विषय में बता रहे हैं , आज ही हमने मध्यप्रदेश के जिस अंचल में यह नृत्य सर्वाधिक किया जाता है , वहां जो देखा उसी का विवरण दे रहे हैं, छत्तीसगढ़ के कुकदूर , नेऊर ,से जैसे ही हम रुख्मिदादर पहुंचे वहां से छोटी छोटी बच्चियों को तैयार होकर कहीं जाते देखा , पूछने पर बताया कि वो सब रीना नृत्य के लिए जा रहे है, हमारे मित्र गोपी सोनी जो वनांचल की संस्कृति के जानकर है के आग्रह पर हमें सड़क के किनारे “रीना नृत्य” करके दिखाया।

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सीमावर्ती छत्तीसगढ़ के वन ग्राम में और मध्यप्रदेश के

विध्यांचल और सतपुड़ा पर्वत के पूर्वी क्षेत्र मंडला, डिंडोरी, शहडोल, बालाघाट, सिवनी आदि जिलों मैं गौंड एवम् बैगा जनजाति की महिलाओ द्वारा किया जाता हैं। रीना नृत्य एक गिरिजा उत्सव नृत्य है।एक स्त्री नृत्य है। रीना नृत्य में नृतक आमने – सामने समूह बनाकर नाचते हैं पहले एक समूह नृत्य करेगा उसके प्रत्युत्तर में फिर दूसरा समूह नृत्य करेगा।इस नृत्य के दौरान वादक भी मांदर की थाप देते हुए स्वयं थिरकता है ।कई जगहों पर बिना वादक के भी नृत्य किया जाता है।समय यह बैगा जन जातीय की महिलाओं/बालिकाओं के द्वारा किया जाता है ,जो 15दिन तक उत्सव के रूप में चलते रहता है। डिंडोरी जिले से नृत्य देखने के बाद प्राप्त तथ्य को विकिपीडिया में भी अपडेट किया गया है।

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