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B.ed. धारी 3000 शिक्षकों पर हाई कोर्ट की तलवार लटकी अल्टीमेटम की मियाद पूरी

कोर्ट ने आगामी सुनवाई के लिए 10 दिसंबर का समय दिया, सरकार को एक सप्ताह में ही निर्णय लेना होगा

छत्तीसगढ़ में सहायक शिक्षक भर्ती को लेकर दायर अवमानना याचिका पर बिलासपुर उच्च न्यायालय ने तल्ख रुख अख्तियार कर लिया है ।जस्टिस अरविंद वर्मा की बेंच में हुई सुनवाई के अनुसार राज्य शासन को इस विषय में कड़ी फटकार लगाई गई है ।न्यायालय ने सरकार को 7 दिन का अल्टीमेट देकर कहा है ,कि बी .ए.ड की योग्यताधारी शिक्षको की नियुक्ति , को खत्म कर सरकार नई रिवाइज्ड सलेक्शन लिस्ट जारी कर उसकी रिपोर्ट को न्यायालय में पेश करें। इस विषय में न्यायालय ने अगली सुनवाई की तारीख भी निश्चित कर दी है, जो की 10 दिसंबर को होगी ।आपको बताते चलें कि राज्य शासन ने नियमों को पाक में रखकर बी.एड. डिग्री धारी अभ्यर्थियों को सहायक शिक्षक के पद पर नियुक्ति दे दी थी ।

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इस मामले में डी,.एल.एड .डिग्री धारी अभ्यर्थियों की याचिका हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लगी थी ।जिस पर कोर्ट ने निर्णय दिया था कि सहायक शिक्षक की भर्ती के लिए बी.एड. की डिग्री की मान्यता गलत ठहराया है । कोर्ट ने निर्णय में कहा था कि सरकार बी .एड. की डिग्री धारी शिक्षकों की नियुक्ति को तत्काल निरस्त करे। इसके बाद भी राज्य शासन ने अब तक नियुक्ति निरस्त नहीं की है ,जबकि डी .एल .एड .अभ्यर्थियों ने इस बाबत सरकार के खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन भी किया है ।अभी तक डी एल एड अभ्यर्थियों की नियुक्ति आदेश जारी नहीं होने से हाई कोर्ट भी नाराज है ।डीएलएड अभ्यर्थियों ने सरकार के लचर रुख को देखते हुए अवमानना याचिका लगाई थी। बीच में न्यायालय ने भी टिप्पणी की थी कि नौकरी से निकलना ही एकमात्र उपाय नहीं है। शासन के रवैया के खिलाफ और अवमानना याचिका की सुनवाई के दौरान शिक्षा विभाग को स्पष्ट निर्देश दिया था कि 21 दिन के भीतर बी. एड.के अभ्यर्थियों को की नियुक्ति समाप्त कर दिया जाए।


उच्च न्यायालय के फैसले ने 3000 से अधिक बी .एड .धारी शिक्षकों की नियुक्ति पर सीधे सीधे तलवार लटका दिया है। उनके समक्ष या समस्या है कि वह आखिर करेंगे क्या क्योंकि इस विषय में सर्वोच्च अदालत का फैसला पहले से ही उनके खिलाफ में है ।अब देखना यह है कि छत्तीसगढ़ की सरकार उनकी नौकरी बचाने के लिए बीच का रास्ता तैयार करती है या उन्हें नौकरी से बाहर देख का रास्ता दिखाती है। सरकार को न्यायालय की अवधारणा का सामना करना मुश्किल होगा।

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