कर्मचारी जगतछत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में कर्मचारी संगठन की ताकत अब हाथी के उस दांत की तरह जो दिखता तो है धारदार पर सरकार को काट नहीं सकते कुकुरमुत्ते की तरह उगते संगठनों ने कर्मचारी हितों पर बड़ा आघात किया है – दानी राम वर्मा

संगठनों को मान्यता देने वाली नियामक संस्था पंजीयन फर्म एवं सोसायटी भी बेपरवाह ,पंजीयन कराने मात्र से संगठन नहीं बनते

रायपुर प्रवक्ता.कॉम 29 जून 2025

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(इस लेख के लेखक वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षाविद् दानी राम वर्मा पूर्व अध्यक्ष छत्तीसगढ़ शिक्षक संघ , पूर्व प्राचार्य दानी गर्ल्स उच्चतर माध्यमिक विद्यालय रायपुर हैं)

संगठनों एवं उनकी मान्यताओं को लेकर बहुत पहले से ही सवैधानिक प्रावधान है। परंतु जिसकी लाठी उसकी भैंस की कहावत से पिछली सरकारों ने खूब मनमानी की है। आज भी ट्रेड यूनियन का जमाना चल रहा है जहां शिक्षक संघों को भी ट्रेड यूनियन बना दिया गया है जो देश का दुर्भाग्य है। इसके जिम्मेदार सरकारें ही हैं और शिक्षक भी। क्योंकि शिक्षक भी अपने आपको कर्मचारी मान लिया है। दीर्घ काल से हमारा अनुभव है कि संगठनों को चलाने के लिए पंजीयक नामक एक सवैधानिक निकाय है परंतु सरकारों की दादागिरी के सामने यह संस्था अपंग हो गया है।

महंगाई भत्ते के लिए गिड़गिड़ाने की नौबत इतने बड़े कर्मचारी समूह को आ गई हैं ।इस पर गहन चिंतन की जरूरत है।संगठन शक्ति और एकता कहां खो गई ।

इसीलिए शिक्षकों एवं कर्मचारियों के संगठनों की संख्या अनगिनत हो गया है। अधिकांश स्वयंभू संगठन हैं, जिनके पदाधिकारी आजीवन बने रहते हैं। सरकारें ढोल में पोल रहेंगी तो ऐसे संगठन तो बनते ही रहेंगे क्योंकि आजाद भारत की सरकारें अब तक शिक्षकों और कर्मचारियों के सशक्त संगठन बनने ही नहीं दिये। तभी तो सरकारें ही संगठनों का निर्माण करती हैं। शिक्षक कांग्रेस और कर्मचारी कांग्रेस इसका उदाहरण है। सरकारें खुद मान्यता भी दिलाती रही हैं, सारे नियम-कानूनों को ताक में रख कर।

पंजीकृत और मान्यता प्राप्त संगठन के बने प्रावधानों की नहीं हो रही है मॉनिटरिंग–

सरकार के द्वारा मान्यता प्राप्त संगठनों के लिए निर्धारित स्थायी कानूनी प्रावधान पहले से मौजूद हैं। उसमें बीस प्रतिशत सदस्यता की अनिवार्यता भी पहले से है। सदस्यता परीक्षण और मान्यता की पात्रता संबंधी काम पंजीयक का है। उसने सरकारों को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये। छत्तीसगढ़ सरकार के किसी अधिकृत नुमाइंदे के द्वारा अभी-अभी घोषणा की गई है कि नया मान्यता नियम लागू करेंगे। इसमें नया क्या है? और ऐसा झूठ फैलाने वाला कौन है ? किस अधिकारिक बैठक में क्या-क्या नियम बना रहे हैं। जो भी कहा जा रहा है वह सब पुराने नियमावली में हैं। इसका कड़ाई से पालन करना सुनिश्चित किया जाये। यह सब काम पंजीयक को करना है। सबसे पहले यह बताया जाय कि सरकार के द्वारा विधिवत मान्यता प्राप्त संगठन कितने और कौन-कौन हैं? क्या उनका प्रामाणिक सदस्य संख्या है? क्या उनका आय-व्यय और आडिट नियमित हो रहा है? क्या उनका निर्वाचन विधिवत हुआ है। अगर नहीं तो जांच किया जाय तत्पश्चात् मान्यता बहाल किया जाय। घोषित किया जाय कि कौन-कौन संगठन शासन द्वारा मान्यता प्राप्त हैं। जो संगठन मान्यता के
लिए आवेदन करें उनका परीक्षण करके मान्यता की जाय। नियमित सलाहकार समितियों की बैठकों में, मान्यता प्राप्त संगठनों को आमंत्रित किया जाय यह नियम है जिसका पालन सुनिश्चित हो।

सदस्यता , आय व्यय ,निर्वाचन ,ऑडिट रिपोर्ट ही जमा नहीं करते आजीवन अध्यक्ष बने रहने से विश्वसनीयता नहीं रही –

अभी तो यह हाल है कि मान्यता प्राप्त संगठन द्वारा सात-आठ साल तक प्रामाणिक सदस्यता सूची, आडिट रिपोर्ट, निर्वाचन की जानकारी कुछ भी पंजीयक के पास जमा नहीं है। उसे एक नोटिश भी नहीं दी गई। उसकी शिकायत करने एवं उच्च न्यायालय द्वारा जांच करने के आदेश के बाद भी कार्यवाही नहीं होती। क्या ऐसे ही संगठनों पर लगाम कसोगे? सरकारी ढोल बजाने से काम नहीं चलता। कार्यवाही कर के दिखाओ। कोई भी नया नियम बनाने की जरूरत नहीं है। मान्यता नियम पर्याप्त है उसके पालन कराने की जरूरत है।

छत्तीसगढ़ में ऐसे कई पंजीकृत शिक्षक संगठन हैं जिनके आजीवन अध्यक्ष बने हुए हैं , इनके आय व्यय, सदस्यता ,और निर्वाचन की नियमित जांच की आवश्यकता है।

सरकार में दम है, वर्तमान छत्तीसगढ़ सरकार की छवि को उज्जवल बनाने की इच्छाशक्त्ति है तो शिक्षक एवं कर्मचारी संगठनों का सदुपयोग करके, सभी विभागों की क्षमता व क्रियाशीलता की परिपाटी को मार्ग प्रसस्त करना है तो कौन रोक रहा है। अब तक किसी सरकार ने जो नहीं कर सका वह करके दिखाने का सुअवसर है, सरकारी दादागिरी का नहीं। शिक्षक एवं कर्मचारी संगठनों को शासन-प्रशासन का अंग बनाओ, नौकर नहीं। सरकारों की अज्ञानता, अकर्मन्यता और अकड़ के कारण ही संगठन ट्रेड यूनिष्ट बनते हैं और शासन-प्रशासन-विरोधी बन जाते हैं। जिससे प्रदेश और देश की छवि धूमिल होती है।

मान्यता नियमों के अनुसार आज परीक्षण किया जाय तो शायद ही कोई संगठन, शासन द्वारा मान्यता प्राप्त के योग्य ठहरेगा। शासन-प्रशासन का डंडा चला कर संगठनों को हांक नहीं सकते। संगठन-शक्त्ति का सदुपयोग करके, शासन-प्रशासन को शक्ति-शाली बनाने का नवाचार करने का जमाना है। अन्यथा सब कुछ नौकरशाहों को सौंप दो उन्हें डंडा चलाना अच्छा आता है। सरकार और नेता उत्सव मनायें। कुकुरमुत्तों की तरह हजारों कर्मचारियों का संगठन बनने दो। उनके स्वयंभू नेताओं द्वारा फूल-माला भेंट से प्रफुल्लित रहो। उन्हें सम्मेलनों के लिए प्रेरित करो और आतिथ्य स्वीकार करने का गौरव हासिल करो। अब तो संगठनों के सम्मेलन की प्रथा भी बंद हो गई है। ट्रेड यूनियन, हड़ताल करते हैं, सम्मेलन नहीं।

शिक्षक सियानमंच (दानी 15 वर्मा)

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