हिंदू राष्ट्र” एक सांस्कृतिक राष्ट्र की अवधारणा को सामने रखने वाले पहले शख्शियत थे गुरुजी
राष्ट्रीय विचारों के अग्रदूत माधव सदाशिव गोलवलकर 'गुरु जी' की जयंती पर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने किया नमन
रायपुर प्रवक्ता.कॉम 19 फरवरी 2025
गुरुजी, सांस्कृतिक राष्ट्र की अवधारणा देने वाले पहले शख्सियत थे –
माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के दूसरे सरसंघचालक थे। गोलवलकर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सबसे प्रभावशाली और प्रमुख शख्सियतों में से एक माना जाता है। वह “हिंदू राष्ट्र” नामक एक सांस्कृतिक राष्ट्र की अवधारणा को सामने रखने वाले पहले व्यक्ति थे, जिनके बारे में माना जाता था कि यह “अखंड भारत सिद्धांत”, भारतीयों के लिए संयुक्त राष्ट्र की अवधारणा में विकसित हुआ था। गोलवलकर भारत के शुरुआती हिंदू राष्ट्रवादी विचारकों में से एक थे। गोलवलकर ने वी ओर आवर नेशनहुड डिफाइंड पुस्तक लिखी। बंच ऑफ थॉट्स उनके भाषणों का संकलन है। के.बी. हेडगेवार के बाद गोलवलकर 1940 से 1973 तक आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक (प्रमुख) बने रहे।
माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के दूसरे सरसंघचालक थे। गोलवलकर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सबसे प्रभावशाली और प्रमुख शख्सियतों में से एक माना जाता है। वह “हिंदू राष्ट्र” नामक एक सांस्कृतिक राष्ट्र की अवधारणा को सामने रखने वाले पहले व्यक्ति थे, जिनके बारे में माना जाता था कि यह “अखंड भारत सिद्धांत”, भारतीयों के लिए संयुक्त राष्ट्र की अवधारणा में विकसित हुआ था। गोलवलकर भारत के शुरुआती हिंदू राष्ट्रवादी विचारकों में से एक थे। गोलवलकर ने वी ओर आवर नेशनहुड डिफाइंड पुस्तक लिखी। बंच ऑफ थॉट्स उनके भाषणों का संकलन है। के.बी. हेडगेवार के बाद गोलवलकर 1940 से 1973 तक आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक (प्रमुख) बने रहे।
वाराणसी के हिंदू विश्वविद्यालय से इनको गुरुजी का नाम मिला–
माधव सदाशिव गोलवलकर का जन्म 1906 में महाराष्ट्र नागपुर के पास के गांव रामटेक में हुआ था। माधव सदाशिव गोलवलकर के पिता का नाम सदाशिवराव और मां का नाम लक्ष्मीबाई था। माधव सदाशिव गोलवलकर का परिवार समृद्ध था और उन्होंने उनकी पढ़ाई और गतिविधियों में उनका साथ दिया। गोलवलकर अपने नौ भाई-बहनों में एकमात्र जीवित पुत्र थे। अपनी आठ संतानों को खोने के बाद उनके माता पिता के लिए गोलवलकर काफी दुलारे थे। उन्हें ऐसा लगता था कि नियति ने किसी बड़े कार्य को करने के लिए ही जीवित रखा था। वे एक विलक्षण प्रतिभा के धनी थे, नागपुर के हिसलोप कॉलेज से स्नातक डिग्री प्राप्त करने के बाद, उन्होंने विज्ञान में मास्टर डिग्री के लिए वाराणसी के हिंदू विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। इस अवधि के दौरान विश्वविद्यालय के संस्थापक और प्रतिष्ठित हिंदू नेता पंडित मदन मोहन मालवीय ने युवा माधव गोलवलकर को हिंदुओं के लिए काम करने के लिए प्रेरित किया। दिन प्रतिदिन उनका कद बढ़ता जा रहा था। अपनी युवा अवस्था के दौरान उन्होंने कॉलेज में एक प्रोफेसर के रूप में भी काम किया था। यहीं से उन्हें छात्रों ने गुरूजी कहना शुरू कर दिया था। बनारस में वह गुरूजी के नाम से ही मशहूर हो गये थे।
रामकृष्ण मिशन आश्रम के लिए अपनी वकालत और आरएसएस का काम छोड़ दिया–
गोलवलकर ने संन्यासी बनने के लिए पश्चिम बंगाल में सरगाछी रामकृष्ण मिशन आश्रम के लिए अपनी वकालत और आरएसएस का काम छोड़ दिया। वह स्वामी अखंडानंद के शिष्य बन गए, जो रामकृष्ण के शिष्य और स्वामी विवेकानंद के भाई भिक्षु थे। 13 जनवरी 1937 को गोलवलकर ने कथित तौर पर दीक्षा प्राप्त की, लेकिन इसके तुरंत बाद आश्रम छोड़ दिया। 1937 में अपने गुरु की मृत्यु के बाद हेडगेवार की सलाह लेने के लिए वे अवसाद और अनिर्णय की स्थिति में नागपुर लौट आए, और हेडगेवार ने उन्हें आश्वस्त किया कि आरएसएस के लिए काम करके समाज के प्रति उनके दायित्व को सबसे अच्छा पूरा किया जा सकता है।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने गुरुजी को किया नमन
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक, महान विचारक और राष्ट्रभक्ति के प्रतीक माधव सदाशिव गोलवलकर ‘गुरु जी’ की जयंती (19 फरवरी) पर उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन किया।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा कि गोलवलकर जी ने राष्ट्रवाद, सांस्कृतिक पुनर्जागरण और समाजिक समरसता के सिद्धांतों को मजबूत आधार प्रदान किया। उनका जीवन भारत की सनातन परंपरा, आध्यात्मिक मूल्यों और राष्ट्रीय चेतना को सशक्त करने के लिए समर्पित था। उनकी विचारधारा ने देश की युवा पीढ़ी को राष्ट्र-सेवा और सामाजिक उत्थान के मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।
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