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स्कूल शिक्षा सचिवालय की नींद कब टूटेगी शिक्षा विभाग में 10 से 20 साल तक प्रतिनियुक्ति के नाम पर समग्र शिक्षा ओपन स्कूल साक्षरता एम आई एस प्रशासक के पद पर जमे प्राचार्य व्याख्याता प्रधान पाठक कब हटाए जाएंगे ?

स्कूल शिक्षा सचिवालय और लोक शिक्षण संचालनालय के अफसरों की जिम्मेदारी है कि विभाग में सामान्य प्रशासन विभाग के प्रतिनियुक्ति संबंधी नियमों का पालन सुनिश्चित किया जाए

रायपुर प्रवक्ता.कॉम 10 अक्टूबर 2025

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छत्तीसगढ़ राज्य की शिक्षा व्यवस्था को मास्टर सर्जरी की जरूरत है ।यहां पर राजनैतिक सिफारिश और सेटिंग के चलते प्राचार्य ,व्याख्याता ,शिक्षक प्रधान पाठक जिला शिक्षा शिक्षा अधिकारी कार्यालय ,समग्र शिक्षा कार्यालयों में एपी सी ,बी आर सी , डी एम सी ओपन स्कूल में सहायक संचालक से लेकर कई अहम पद , एबीईईओ और एम आई सी प्रशासक के पद पर 10 साल से भी अधिक समय तक जमे हुए हैं। जबकि शासन के प्रतिनियुक्ति नियम के अनुसार 4 साल की अवधि खत्म होने के बाद इन्हें इनके मूल पदस्थापना वाली जगहों पर भेजा जाना चाहिए। कबीरधाम जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में एम के गुप्ता 20 साल से अधिक समय तक सहायक संचालक हैं ।उन्हें कभी डी ई ओ ,कभी बी ई ओ का प्रभार मिलते रहता है ।सरकार किसी की भी हो उनके ऊपर कोई हाथ नहीं डाल सकता ।

कबीरधाम में कई साल से जमे अफसर कब हटेंगे –

जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय कबीरधाम में प्राचार्य यू आर चंद्राकर में सहायक संचालक के पद पर 10 साल से अधिक समय तक पदस्थ हैं। ।डी ईओ कबीरधाम में शासन के द्वारा पूर्ण कालिक सहायक संचालक पात्रा की पदस्थापना के बाद भी स्वीकृत पर से अधिक संख्या में यहां सहायक संचालक कर कर रहे हैं जबकि राज्य के सैकड़ों हॉयर सेकंडरी स्कूल में प्राचार्यों की जरूरत है। कबीरधाम में ही एम आई एस प्रशासक के तौर पर 15 साल से अधिक समय तक सतीश यदु पदस्थ हैं । शासन किसी की भी हो इनसे अधिक उपयुक्त कोई भी नहीं मिला । कबीरधाम जिले के पंडरिया विकास खंड में अभी भी कोई पूर्ण कालिक बी ई ओ नहीं है ।

रायपुर के स्थित ओपन स्कूल में कई शैक्षणिक संवर्ग के शिक्षकों को सालों से रखा गया है। कई शिक्षक तो नगरीय निकाय और जल संसाधन विभाग में सेवाएं दे रहे हैं। लोगों में मन में सवाल यह कि यह दोहरे दर्जे की व्यवस्था क्यों । आखिर स्कूल शिक्षा विभाग अपने ही बनाए नियमों का पालन कब करेगा।

नए शिक्षा मंत्री से व्यवस्था परिवर्तन की है उम्मीद –

छत्तीसगढ़ शासन के नए शिक्षा मंत्री गजेंद्र यादव से राज्य के शिक्षकों के साथ साथ पालक और छात्रों को भी बहुत उम्मीदें हैं । राज्य की शिक्षा व्यवस्था के सिस्टम में घुस चुके , दिमकों पर व्यवस्था परिवर्तन की मिट्टी तेल अवश्य ही डाली जाएगी।

पूर्ण कालिक अधिकारी पदस्थ करने की जरूरत राज्य शैक्षिक सेवा परीक्षा होनी चाहिए

राज्य की शिक्षा व्यवस्था में फूल फ्लेश अफसरों की कमी है । यहां भी मध्य प्रदेश की ही तरह शिक्षा विभाग के लिए राज्य शैक्षिक सेवा की परीक्षा आयोजित करने की जरूरत है। जिससे योग्य और दक्ष अधिकारी आयेंगे।

प्रभारी के भराेसे शिक्षा व्यवस्था, इसमें 33 से ज्यादा डीईओ और बीईओ, कई नियम विरुध्दविभाग की वेबसाइट के अनुसार, 7 जगह में डीईओ और 26 में बीईओ ही नहीं

राज्य में शिक्षा व्यवस्था प्रभारी अधिकारियों के भरोसे ही चल रही है। ज्यादातर जिलों में जिला शिक्षा अधिकारी और विकासखंड जिला शिक्षा अधिकारी ही नहीं है और उनकी जिम्मेदारी प्रभारी अधिकारियों के हाथों में है। इनमें ऐसे भी लोग अधिकारी की जिम्मेदारी दे दी गई हैं जो इसके लिए क्वालिफाई ही नहीं है। वही अभी पदोन्नति में भी ऐसे शिक्षकों को बीईओ और डीईओ की जिम्मेदारी दी गई है जो नियमों के तहत ही नहीं है। जानकारों के अनुसार, 33 से ज्यादा बीईओ और डीईओ प्रभारी हैं। वही स्कूल एजुकेशन डिपार्टमेंट के वेबसाइट के अनुसार, 26 जिलों में ही डीईओ पदस्थ है और 7 जिलों में कोई भी डीईओ नहीं है। वहीं 146 विकासखंड में से केवल 120 में ही विकासखंड शिक्षा अधिकारी कार्यरत है। ये डाटा भी पुरानी है और इसमें भी कई ऐसे है जो प्रभारी है। कई जगह बीईओ भी नहीं है।

शिक्षा की गुणवत्ता भी प्रभावित

जानकारों की माने तो प्रभारी और मूल पद में पदस्थ अधिकारी में काफी अंतर होता है। जो डीईओ या बीईओ पद पर पदस्थ होते है वे अपनी पूरी शक्ति के साथ कार्य करते है। लेकिन जिन्हें प्रभार दिया जाता है वे कई मामलों में पीछे हट जाते है। उन्हें अपने पद की चिंता होती है। जिसके कारण जो कार्य होना चाहिए वो कार्य भी अच्छे से नहीं हो पाता है। प्रभारी होने से पूरा काम नहीं हो पाता है। काम की गुुणवत्ता भी प्रभावित होती है। प्रभार वाद के चलते शिक्षा की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है।

नियम विरुध्द है 4 साल के बाद लगातार पद में जमे रहना

एक्सपर्ट के अनुसार, बीईओ बनने के लिए किसी भी शिक्षक को पांच साल तक प्राचार्य पद पर कार्य किए हुए होना चाहिए। लेकिन राज्य में ऐसा खेल किया जा रहा है कि व्याख्याता को ही बीईओ की जिम्मेदारी दे दी जा रही है। जो कि नियमों के विरुध्द ही हैं। प्राप्त लिस्ट के अनुसार, ज्यादातर प्रभारी बीईओ व्याख्याता ही है। जिन्हें नियमों की अनदेखी करते हुए बीईओ बना दिया गया है। ऐसे में शिक्षक संगठनों का कहना है कि कैसे किसी व्याख्याता के अंडर में कोई प्राचार्य करेगा। इसमें कार्य भी रूकावट आती है।

ये प्रभारी डीईओ-बीईओ

बलरामपुर में प्रभारी डीईओ मनी राम यादव, जांजगीर में अशोक सिन्हा, मुंगेली में एल पी दाहिरे, कोरिया में विनोद कुमार राय, अम्बागढ़ चौकी में योग्दास साहू, बालोद में मधुलिका तिवारी, दंतेवाड़ा में प्रमोद ठाकुर प्रभारी डीईओ है। ऐसे ही प्रभारी बीईओ में कटेकल्याण में गोपाल पाण्डेय, ओरछा में सन्तु नुरेती, बास्तानार में संजय मिश्रा, चारामा में के के गंजिर, जगदलपुर में राजेश गुप्ता, नहरपुर में एमन जैन, बीजापुर में नागेश्वर निषाद, उसूर में एम वी राव, रामचंद्रपुर में विजय कुशवाहा, बलरामपुर में संजू कन्नोजिया, कुसमी में मनोज कुमार गुप्ता, दंतेवाड़ा में संतोष गुप्ता, बकावंड में चंद्रशेखर यादव, अंबिकापुर में प्रदीप राय, लुंड्रा में मनोज वर्मा, मरवाही में संजय वर्मा, कवर्धा में संजय दुबे, सारेपाली में टीकम चाद पटेल, दुर्गुकोंदल में विकल्प कुमार सिंह, देवभोग में योगेश पटेल, कुआकोंडा में प्रमोद कुमार, मनेंद्रगढ़ में विपिन पाण्डेय, खडगवां में राम निवास मिश्र, आरंग में लाखेश्वेर रात्रे प्रभार में है।

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