शिक्षा की बुनियाद पर चोट, शिक्षा जगत का सत्यानाश सरकार शिक्षा की अनदेखी कर रेवड़ी बांटने और तिहार मनाने में मस्त –दानी राम वर्मा
शिक्षा की ऐसी उपेक्षा पहले कभी नहीं हुई , बिना शिक्षा मंत्री के चल रहा है विभाग ,जो हो रहा है सबको दिख और समझ भी आ रहा है

(इस आर्टिकल के लेखक श्री दानी राम वर्मा , पूर्व प्राचार्य दानी गर्ल्स उच्चतर माध्यमिक विद्यालय रायपुर , छत्तीसगढ़ शिक्षक संघ के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्णकालिक स्वयंसेवक हैं)
रायपुर प्रवक्ता कॉम 3,जून 2025
छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार को तीन साल होने जा रहा है। कांग्रेस सरकार को हटाने और भाजपा को लाने के लिए प्रदेश की जनता ने केवल कुछ ही महिनों में चमत्कार कर दिखाया था। नेता-नौकरशाह और मीडिया भी भौचक्के रह गये थे। हम जैसे लोग सोच रहे थे कि भ्रष्टाचार खत्म होगा और प्रदेश की जर्जर शिक्षा व्यवस्था सुधरेगी। परंतु ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस और भाजपा में रेवड़ी बांटने की प्रतियोगिता हुई थी जिसमें भाजपा जीत गई, कांग्रेस हार गई। दो साल बाद फिर रेवड़ी प्रतियोगिता चलेगी, फिर कोई एक बाजी मारेगी। यही क्रम चलता रहेगा। परिणाम यह हो रहा है कि नेता दांत गिजोरे मौज उड़ायेंगे और नौकरशाह राज करेंगे। वैसे भी प्रदेश और देश को नौकरशाह ही तो चलाता है। नौकरशाहों का राज होगा तो भ्रष्टाचार तो होगा ही व्योंकि भ्रष्टाचार संस्कृति नौकरशाहों का धर्म है। इस नीति के निर्माता अंग्रेज थे और उसे स्थापित किया कांग्रेस ने। भाजपा जहां-जहां स्थापित हुआ वहां-वहां परिवर्तन भी दिखा जैसे गुजरात और उत्तर प्रदेश। यही उम्मीद छत्तीसगढ़ में भी थी। लेकिन छ.ग. की भाजपा सरकार उत्सव मनाने में मगन हैं। किसी भी नेता को, कोई भी जिम्मेदारी मिलती है तो सपथ ग्रहण की तरह पदभार ग्रहण का भी उत्सव बड़े जोर शोर से मनाते हैं। करते क्या हैं यह नौकरशाह का काम है। अभी भी मंत्री, निगम, मंडल, आयोग, तीन साल बाद भी पदग्रहण का अवसर की प्रतीक्षा में हैं। ऐसे ही दो साल और चलेगा फिर चुनाव वर्ष आ जायेगा।
सरकार के पास योग्य विधायक होते हुए भी शिक्षा मंत्री नहीं , न ही शिक्षा आयोग –?
तीसरा साल बीतने वाला है परंतु प्रदेश में अब तक शिक्षामंत्री नहीं है। शिक्षा आयोग, संस्कृत मंडलम् में अध्यक्ष नहीं मिले। शिक्षा का बंठाधार है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का शोर मचाने के सिवाय, शिक्षा जगत का सत्यानाश हो चुका है। तीन साल में कांग्रेसी शिक्षा को ही बढ़ा रहे हैं। स्वामी आत्मानंद के नाम पर अंग्रेजी माध्यम उत्कृष्ट विद्यालय की रेवड़ी से प्रदेश की जनता प्रशन्न थी। परंतु इस नीति ने संपूर्ण शिक्षा जगत को झकझोर कर रख दिया। जनता को कुछ समझ नहीं आया। जनता तो रेवड़ी खोर हो गई। कितने स्कूल बंद हो गये। सभी स्कूलों की दर्ज संख्या और शिक्षक का अनुपात, बिगड़ गया।
हो गया तो नौकरशाहों को तकलीफ हो जायेगी। शिक्षा आयोग में भी कोई जानकार और तेजतर्राट बैठ गए तो नेता-नौकरशाहों का सिर दर्द होने लगेगा। संस्कृत मंडलम् भी उपेक्षा का शिकार है। यदि शिक्षा के इन तीनों स्थानों पर कोई बैठेंगे भी तो, उसे नेता-नौकर शाहों की गुलामी या चापलूसी ही करना पड़ेगा। इससे यह प्रमाणित होता है कि जो नौकरशाह कहेंगे वही होगा। नेता की नहीं चल सकती। यही सच्चाई है। जब तक केंद्र व राज्यों में शिक्षा, सरकारों की रखैल रहेगी और नौकरशाहों से मुक्त नहीं होगी तब तक देश-प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था नहीं बदल सकती। भारत कितना भी संपन्न हो जाय, वह विश्व गुरू तभी बनेगा जब स्वदेशी शिक्षा व्यवस्था स्थापित होगी। देश और प्रदेशों में सशक्त शिक्षा आयोग बनाकर धीरे-धीरे शिक्षा को आयोगों के अधिकार में देना पड़ेगा। बीस साल में स्वदेशी शिक्षा व्यवस्था स्थापित हो जायेगी। अब तो केवल मोदी-योगी से ही उम्मीद की जा सकती है क्योंकि वे भी साधुसंत समाज के घटक हैं और साधु-संत समाज ही स्वदेशी शिक्षा के आधार हैं।
हमें तो प्रदेश के भाजपा सरकार से उम्मीद थी कि स्वामी आत्मानंद, विवेकानंद और गांधी जी के नाम से “हांथी के दांत खाने के और दिखाने के और”, की कुप्रथा को बंद करते और प्रत्येक कक्षा के पाठ्यक्रमों में इन तीनों महापुरुषों के व्यक्त्तित्व और दर्शन का अध्ययन कराते। अत्यंत ही खेद का विषय है कि हमारे राष्ट्रीय महापुरूषों को भी नेताओं और नौकरशाहों ने जाति या राज्य के महापुरूष बना दिये। जैसे आत्मानंद को छत्तीसगढ़ के कुर्मियों का, गांधी को गुजरात का, विवेकानंद को बंगाल का, गुरूघांसीदास और डॉ. अंबेडकर को जाति विशेष का। ये सभी राष्ट्रीय महापुरूष हैं। इनको पाठ्यक्रमों में स्थान मिलना चाहिए। इनके त्याग-तप, देशप्रेम, कृतित्व एवं व्यक्तित्व को भावी नागरिकों को पढ़ाते। वह भी हिंदी और संस्कृत माध्यमों में। क्या लंगड़ी भाषा अंग्रेजी माध्यम से भारत विश्वगुरू बनेगा ? अगर नेता-नौकरशाह और मीडिया में हिम्मत है तो इन्हें भारत के भावी नागरिकों को जानने और समझने दें।
महापुरुषों के नाम पर केवल राजनीति–
इन महापुरूषों के नाम से राजनीति करने वालों से जब भारत के भावी नागरिक पूछेंगे कि क्या उन्होंने इनके विचार के अनुसार भाषा एवं शिक्षानीतिशिक्षकों की नियुक्ति के लिए बजट नहीं है। संस्था प्रमुखों के पर्यो को पदोन्नति से भरने का भी फुर्सद नहीं मिला। सरकारी स्कूल पढ़ाने लायक ही नहीं है। इसलिए ट्यूशन-कोचिंग और निजी शिक्षण संस्थाओं का बाढ़ आ गया है। कांग्रेस ने छ.ग. में आत्मानंद के नाम पर, राजस्थान में गांधी जी के नाम पर और भारत में स्वामी विवेकानंद के नाम पर अंग्रेजी माध्यम वाली नीति से ऐसा काम किया है कि जनता अंग्रेजी माध्यम के लिए पागल हो गई है। यह काम सोची-समझी नीति पर आधारित है। हिंदी-संस्कृत को खत्म करने और अंग्रेजी को भारत में स्थापित करने के लिए जो मैकाले नहीं कर पाया था वह कांग्रेस ने कर दिखाया। शिक्षा को नौकरशाहों का गुलाम बना दिया।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति का झुनझुना बजा रहे हैं–
छत्तीसगढ़ में तो भाजपा की सरकार ने शिक्षा को पूरी तरह नौकरशाहों को सौंप दिया है। नेता गण केंद्रीय सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति का झुनझुना पकड़े नाच-कूद रहे हैं। अभी तक छत्तीसगढ़ में ऐसा कोई नेता पैदा नहीं हुआ जो शिक्षा को नौकरशाहों की गुलामी से आजाद करा दे। यह जल्द ही दिख जायेगा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी ढोल में पोल हैं। क्योंकि अब तक की सभी अधूरी शिक्षा नीति, मैकाले के बोतल में देशी शराब भरने का काम सिद्ध हुआ है। हमारा यह विचार बहुत ही कडुवा लगेगा लेकिन सच कड़वा ही होता है। आठ दसक की आजादी में प्रमाणित हो गया है कि भारत अंग्रेजी का गुलाम हो चुका है। नौकरशाहों का गुलाम हो चुका है। भारत इंडिया हो चुका है। इसीलिए भाजपा की सरकारों से उम्मीद थी कि शिक्षा के लिए कुछ खास करेंगे। किंतु हमारी राष्ट्रीय शिक्षा-भाषा नीति पर न तो केंद्र गंभीर है और न ही राज्य। इसका एकमात्र कारण है कि शिक्षा सरकारों की रखैल बन गई है।
कांग्रेस को हटाने के बाद उम्मीद थी सुशासन होगा –
कांग्रेस सरकार को हटाने और भाजपा को लाने के लिए प्रदेश की जनता ने केवल कुछ ही महिनों में चमत्कार कर दिखाया था। नेता-नौकरशाह और मीडिया भी भौचक्के रह गये थे। हम जैसे लोग सोच रहे थे कि भ्रष्टाचार खत्म होगा और प्रदेश की जर्जर शिक्षा व्यवस्था सुधरेगी। परंतु ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस और भाजपा में रेवड़ी बांटने की प्रतियोगिता हुई थी जिसमें भाजपा जीत गई, कांग्रेस हार गई। दो साल बाद फिर रेवड़ी प्रतियोगिता चलेगी, फिर कोई एक बाजी मारेगी। यही क्रम चलता रहेगा और नौकरशाह राज करेंगे। वैसे भी प्रदेश और देश को नौकरशाह ही तो चलाता है। नौकरशाहों का राज होगा तो भ्रष्टाचार तो होगा ही व्योंकि भ्रष्टाचार संस्कृति नौकरशाहों का धर्म है। इस नीति के निर्माता अंग्रेज थे और उसे स्थापित किया कांग्रेस ने। भाजपा जहां-जहां स्थापित हुआ वहां-वहां परिवर्तन भी दिखा जैसे गुजरात और उत्तर प्रदेश। यही उम्मीद छत्तीसगढ़ में भी थी। लेकिन छ.ग. की भाजपा सरकार उत्सव मनाने में मगन हैं। किसी भी नेता को, कोई भी जिम्मेदारी मिलती है तो सपथ ग्रहण की तरह पदभार ग्रहण का भी उत्सव बड़े जोर शोर से मनाते हैं। करते क्या हैं यह नौकरशाह का काम है। अभी भी मंत्री, निगम, मंडल, आयोग, तीन साल बाद भी पदग्रहण का अवसर की प्रतीक्षा में हैं। ऐसे ही दो साल और चलेगा फिर चुनाव वर्ष आ जायेगा।
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नौकरशाही चला रही है सरकार –
इन महापुरूषों के नाम से राजनीति करने वालों से जब भारत के भावी नागरिक पूछेंगे कि क्या उन्होंने इनके विचार के अनुसार भाषा एवं शिक्षानीति
शिक्षकों की नियुक्ति के लिए बजट नहीं है। संस्था प्रमुखों के पर्यो को पदोन्नति से भरने का भी फुर्सद नहीं मिला। सरकारी स्कूल पढ़ाने लायक ही नहीं है। इसलिए ट्यूशन-कोचिंग और निजी शिक्षण संस्थाओं का बाढ़ आ गया है। कांग्रेस ने छ.ग. में आत्मानंद के नाम पर, राजस्थान में गांधी जी के नाम पर और भारत में स्वामी विवेकानंद के नाम पर अंग्रेजी माध्यम वाली नीति से ऐसा काम किया है कि जनता अंग्रेजी माध्यम के लिए पागल हो गई है। यह काम सोची-समझी नीति पर आधारित है। हिंदी-संस्कृत को खत्म करने और अंग्रेजी को भारत में स्थापित करने के लिए जो मैकाले नहीं कर पाया था वह कांग्रेस ने कर दिखाया। शिक्षा को नौकरशाहों का गुलाम बना दिया।
छत्तीसगढ़ में तो भाजपा की सरकार ने शिक्षा को पूरी तरह नौकरशाहों को सौंप दिया है। नेता गण केंद्रीय सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति का झुनझुना पकड़े नाच-कूद रहे हैं। अभी तक छत्तीसगढ़ में ऐसा कोई नेता पैदा नहीं हुआ जो शिक्षा को नौकरशाहों की गुलामी से आजाद करा दे। यह जल्द ही दिख जायेगा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी ढोल में पोल हैं। क्योंकि अब तक की सभी अधूरी शिक्षा नीति, मैकाले के बोतल में देशी शराब भरने का काम सिद्ध हुआ है। हमारा यह विचार बहुत ही कडुवा लगेगा लेकिन सच कड़वा ही होता है। आठ दसक की आजादी में प्रमाणित हो गया है कि भारत अंग्रेजी का गुलाम हो चुका है। नौकरशाहों का गुलाम हो चुका है। भारत इंडिया हो चुका है। इसीलिए भाजपा की सरकारों से उम्मीद थी कि शिक्षा के लिए कुछ खास करेंगे। किंतु हमारी राष्ट्रीय शिक्षा-भाषा नीति पर न तो केंद्र गंभीर है और न ही राज्य।